हिंदी मातृभाषा
अवलोकन :
राज्यों की विधियां राज्य की शासकीय भाषा में बनाई जा सकती है , लेकिन अंग्रेजी में अनुवाद अपेक्षित होगा। निम्न न्यायालयों की भाषा , उन्हें लागू प्रक्रिया विधि के तहत , अंग्रेजी या प्रादेशिक शासकीय भाषा होती है।
उच्चतम न्यायलय और पच्चीस उच्च न्यायालयों सहित सभी जिला तथा तालुका न्यायालयों की कामकाज की भाषा हिंदी बन सकती है ? भाषाई विविधता और संप्रेषण के व्यावहारिक पक्ष को ध्यान में रखकर हल तलाशना होगा।
1901 में न्यायालयों में हिंदी के प्रयोग की अनुमति :
संविधान निर्माण सभा ने संविधान का हिंदी अनुवाद करने में मानक विधि शब्दावली की कमी का अनुभव किया था।
1) विधि शब्दावली
न्यायाधीश चंद्रेशवर प्रसाद की अध्यक्षता में सन 1961 में गठित राजभाषा (विधायी) आयोग ने विधि पारिभाषिक शब्दावली के विकास और अधिनियमों का हिंदी में अनुवाद का कार्य आरंभ किया। आयोग के सदस्य सचिव बालकृष्ण ने भारत के संविधान का हिंदी प्रारूप तैयार किया था ; हिंदी में विधि के प्रारूपण की शैली निर्धारण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। महत्वपूर्ण विधानों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद राष्ट्रपति के प्राधिकार से प्रकाशित किया गया। 1970 में आयोग ने लगभग दस हजार प्रविष्टियों की " विधि शब्दावली " यानी लीगल ग्लोसरी प्रकाशित की।
2) व्यथा अपनी ही जुबान में बंया
कानूनी भाषा की आलोचना दुर्बोध शैली के कारण है। साधारण बोलचाल की भाषा को कानून की भाषा नहीं बनाया जा सकता है। कानून की भाषा सुनिश्चित और सुस्पष्ट तथा प्रयुक्त शब्दों के भाव असंदिग्ध होने चाहिए। मुकद्दमों की तथ्यगत भिन्नता और कानून की धारा का एकाधिकार प्रकार से अर्थान्वयन बहुधा न्यायप्रक्रिया को क्लिष्ट बना देता है।
विधि को इस तरह लागू करना जिससे विधायिका का आशय पूरा हो सके , भाषायी निर्वाचान से ही संभव है। हमारे अधिकांश विधान आजादी से पूर्व के , अंग्रेजो द्वारा बनाये गए रोमन विधि पर आधारित और मूलतः अंग्रेजी में है। ग्रीक और लेटिन शब्दों का यथेष्ट मात्रा में प्रयोग हुआ है। स्वांतत्रोत्तर केंद्रीय कानून अंग्रेजी में बने। राज्यों के अधिकतर कानून अंग्रेजी में है। विधान अंग्रेजी में होने से अंग्रेजी में व्याख्या सहज ही सुगम है।
प्रादेशिक (वर्नाक्युलर) भाषाओ को लेकर राजनैतिक दुराग्रहों से पृथक , संवाद की समस्या है। जिला और तालुका स्तर पर कार्यरत न्यायालय "तथ्य के न्यायालय " कहे जाते है , जंहा मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किये जाते है।
शीर्ष न्यायालय और उच्च न्यायालयो में अनुवाद की सुविधा उपलब्ध है , निचले न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषा को निषिद्ध या सीमित करना न्याय को अवरुद्ध करना है। व्यथा अपनी ही जुबान में बया होती है।
3) न्यायालयों की भाषा
न्यायालयों की भाषा विधि व् विधि भाष्य - ग्रंथो की भाषा पर निर्भर है। मौलिक विधि - साहित्य अंग्रेजी में है , जिसकी हिंदी में रचना के बिना राजभाषा में न्याय की संकल्पना का कोई औचित्य नहीं है। इसके लिए हिंदी का विधि - कोश बढ़ाने के आवश्यकता है।
केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय के राजभाषा खंड द्वारा सन 1988 में विधिक क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के अंग्रेजी से हिंदी , लेटिन से हिंदी , हिंदी से अंग्रेजी , और अरबी - फारसी से हिंदी में अर्थ सम्मलित करते हुए करीब साढ़े चार सौ पृष्ठों में " विधि शब्दावली " का उत्तरवर्ती संस्करण प्रकाशित किया गया।
इसके अतिरिक्त विधिक विधिक शब्दकोश के विस्तार का कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ है। पिछले दो दशक वैश्वीकरण तथा सूचना - तकनीक के रहे है। नये - नये कानून बने है। तकनिकी विषयों से जुड़े शब्दों के हिंदी और अन्य प्रादेशिक भाषाओ में एकरूप समानार्थी शब्दों की खोज का कार्य नहीं हो सका है।
राजभाषा आयोग की यह राय व्यावहारिक और मानने योग्य है, कि जंहा किसी कानूनी विचार को प्रकट करने के लिए स्वदेशी सूत्रों से कोई सर्वथा उपयुक्त , सरल और समान शब्द न मिले , वंहा उस विचार के अंग्रेजी या ग्रीक या लेटिन शब्द को जैसा - का - तैसा अपना लेने नहीं है।
हिंदी की असमर्थता दूर करने के लिए जो नए शब्द और वाक्यांश बनाये और अपनाये जाये उनमे अधिकतम एकरूपता हो। हिंदी को न्याय की भाषा बनाने के लिए हिंदी में विधानों और स्तरीय विधि साहित्य की रचना हो ; मानक , प्रामाणिक और सर्वसम्मत विधि शब्दावली के बिना यह संभव नहीं है।
देश की अदालतें राजभाषा हिंदी में मुकद्दमों की सुनवाई करे और हिंदी में फैसला सुनाये , विधि एवं न्याय क्षेत्र में भाषाविदों और विधिवेत्ताओं के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।
सभी सरकारी कार्यालयों में अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी का उपयोग करने पर जोर दिया जाता है। वर्ष भर हिंदी में अच्छे विकास कार्य करने वाले और अपने कार्य में हिंदी का अच्छी तरह उपयोग करने वाले को पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया जाता है।
हिंदी के लिए पुरस्कार :
1) राजभाषा पुरस्कार
हिंदी दिवस (14 सितम्बर ) पर हिंदी के प्रति लोगो को उत्साहित करने हेतु राजभाषा पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार पहले राजनेताओ के था , जिसे बाद में बदल कर " राजभाषा कीर्ति पुरस्कार " और " राजभाषा गौरव पुरस्कार " कर दिया गया। राजभाषा गौरव पुरस्कार लोगो को दिया जाता है जबकि राजभाषा कीर्ति पुरस्कार किसी विभाग , समिति आदि को दिया जाता है।
2) राजभाषा गौरव पुरस्कार
यह पुरस्कार तकनीकी या विज्ञानं पर लिखने वाले किसी भी भारतीय नागरिक को दिया जा सकता है। इसमें दस हजार से लेकर दो लाख के 13 पुरस्कार होते है। इसमें प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाले को 2 लाख रूपये , द्वितीय पुरस्कार प्राप्त कारने वाले को डेढ़ लाख रूपये और तृतीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले को पचहत्तर हजार रूपये दिए जाते है। साथ ही दस लोगो को प्रोत्साहन पुरस्कार के रूप में दस दस हजार रुपए प्रदान किये जाते है। और साथ ही स्मृति चिन्ह भी दिया जाता है। इसका मूल उद्देश्य तकनीकी और विज्ञानं क्षेत्र में हिंदी को आगे बढ़ाना है।
3) राजभाषा कीर्ति पुरस्कार
इस पुरस्कार योजना के तहत कुल 39 पुरस्कार दिए जाते है। यह पुरस्कार किसी समिति , विभाग , मंडल आदि को द्वारा हिंदी में किये गए श्रेष्ठ कार्यो के लिए प्रदान किया है। इसका मूल उद्देश्य सरकारी कार्यो में हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ाना है।
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